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Month: October 2020

गांधी, गोडसे और हिंदुत्व के भीतर के ‘पौरुष’ की तलाश

नीलांजन मुखोपाध्याय गांधी की हत्या और उस हत्या को बहादुरी की तरह पेश किया जाना भी उसी तरह का सुबूत है, जिस तरह बाबरी मस्जिद का विध्वंस या इसी तरह की दूसरी हरक़तें हैं। गांधी की जिस छवि का इस्तेमाल राज्य काज में लगी हुई संघ परिवार की शाखा की तरफ़ से लगातार किया जा…

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हाथरस:10 हज़ार नारीवादियों ने दोषियों, लापरवाह अफ़सरों पर कार्रवाई के लिए जारी किया बयान

10 हज़ार नारीवादी समूहों और नारीवादियों ने  गैंगरेप व हत्या के दोषियों और इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की है। उन्होंने इस संबंध में बयान जारी किया है। बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में डॉ. सैयदा हामिद, अरुणा राय, प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार, इंदिरा जयसिंह, अपर्णा…

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दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा के विरोध का जिम्मा इसी समुदाय का नहीं है!-अपूर्वानंद

बाबा साहब आंबेडकर और संविधान के चलते दलितों को बराबरी का अधिकार क़ानूनी तौर पर प्राप्त हुआ, लेकिन एक व्यापक जीवन में शामिल होने का अनुभव उन्हें कभी नहीं मिला। यह अभी भी सपना ही है कि एक दलित सामान्य लोकसभा या विधानसभा की सीट पर जीत जाए। वैसे ही जैसे एक मुसलमान ग़ैर मुसलमान-बहुल…

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वीके मेनन : नेहरू का चाणक्य जिससे अमेरिका तक खौफ़जदा था

अनुराग भारद्वाज 1957 में कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका के जनमत संग्रह प्रस्ताव का उन्होंने इस कदर विरोध किया कि संयुक्त राष्ट महासभा को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा. 1947 से लेकर 1964 तक भारत और नेहरू पर जिन ख़ास लोगों का प्रभाव था उनमें से वीके मेनन एक थे. मेनन पर साम्यवाद का प्रभाव लंदन स्कूल…

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हाथरस घटना : जाति की जंग और सत्ता का घिनौना चरित्र| नारीवादी चश्मा

स्वाति सिंह सवाल है कि आख़िर क्यों न पीड़िता की जाति और उसके वर्ग का उल्लेख हो। हमें नहीं भूलना चाहिए कि बलात्कार के पीछे विचार ही अपने विशेषाधिकार की सत्ता का क्रूर प्रदर्शन करना है, वो विशेषाधिकार जो उन्हें अपनी विशेष जाति, धर्म या वर्ग से मिला है। ऐसे में महिला की जाति और उसका वर्ग…

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आरएसएस का हिंदू राष्ट्रवाद यानी सवर्णों का विद्रोह – ज्याँ द्रेज़

भारत में ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ लोकतंत्र की समतावादी माँगों के ख़िलाफ़ उच्च जातियों के विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है। हिंदुत्व परियोजना उच्च जातियों के लिए एक जीवनदान है जिसमें अब तक ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने का वादा किया गया है। भारत में ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ की हालिया उठापटक, जाति को ख़त्म करने…

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हाथरस मामले में अब जो हो रहा है वह भी किसी दुष्कर्म से कम नहीं है

प्रदीपिका सारस्वत ऐसे मामलों में न्याय हो पाना वैसे भी मुश्किल होता है, ऊपर से अगर ये राजनीति और मीडिया की दुधारू भी बन जाएं तब चीज़ें और भी उलझ जाती हैं बलात्कार जैसी घटना पर पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया उस समाज से अलग नहीं होती जिसे वह प्रशासित करता है. और ऐसे मामलों…

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लोकप्रिय आध्यात्मिकता की आड़ में पूंजी, सियासत और जाति-अपराधों के विमर्श का ‘आश्रम’

जैनबहादुर फिल्मों के माध्यम से समाज में प्रचलित कई प्रकार के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक मुद्दों और विमर्शों को भी दिखाया जाता है, भले ही वे आधे-अधूरे, सत्य-असत्य, उचित-अनुचित के घालमेल से लबरेज़ हों। आजकल वेब सिरीज़ के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय राजनीति, सामाजिक मुद्दों और विमर्शों पर फ़िल्म बनायी जा रही…

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कहानीः कुल कलंक- इतालो काल्विनो

इतालो काल्विनो (1923-1985) – क्यूबा में जन्मे इतालो काल्विनो प्रसिद्ध इतालवी पत्रकार और कथाकार थे जिन्हे विश्वयुद्ध के बाद के सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों में शामिल किया जाता है। उन्हें उनकी अद्भूत किस्सागोई के लिए जाना जाता है. आज पढें उनकी  चर्चित कहानी ‘दि ब्लैक शीप’ जिसका हिंदी अनुवाद (कुल कलंक) युवा कथाकार चंदन पांडेय ने किया है.–…

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ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जातिवाद है दलित महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा की वजह

गायत्री यादव दलित महिलाओं के बलात्कार और शारीरिक शोषण के मूल में समाज में निहित ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और अपनी जाति के सर्वोच्च होने का अहंकार है। यौन हिंसा दलित-आदिवासी औरतों के ख़िलाफ़ शोषण और दमन के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बीते 14 सितंबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में…

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