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Year: 2021

किसान-आंदोलन इस देश की जनता की सबसे बड़ी उम्मीद है

लाल बहादुर सिंह किसान आंदोलन इस देश की जनता की सबसे बड़ी उम्मीद है, महज महान प्रेरणा के रूप में ही नहीं, वरन नीतिगत बदलाव की  दिशा और सम्भावना की दृष्टि से भी। विश्व इतिहास के गम्भीर अध्येता प्रो. लाल बहादुर वर्मा के शब्दों में यह आंदोलन विश्व-इतिहास की अनूठी घटना है और इससे उचित ही लोगों को…

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रसोई गैस के दाम 7 साल में दोगुनेः सरकार मालामाल, जनता बेहाल

घरेलू रसोई गैस के दाम सात साल में दोगुने हो गए हैं तो खाने की क़ीमतें पिछले एक साल में 50 फ़ीसदी बढ़ गई हैं। ऐसे में सवाल है कि महंगाई का बोझ आम लोगों पर कितना है? यह समझने के लिए एक तरीक़ा तो मुद्रास्फ़ीति का है जो काफ़ी पेचिदा है। दूसरा तरीक़ा है…

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सुरेश स्वप्निलः‘ समय के विरुद्ध’ जीने वाला शख़्स

शरद कोकास आज 10 मार्च, सुरेश स्वप्निल का जन्मदिन है । सुरेश स्वप्निल से मेरी पहली मुलाकात मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा, जानकी रमण महाविद्यालय बलदेव बाग, जबलपुर में आयोजित दस दिवसीय कविता रचना शिविर के प्रथम दिन अर्थात 21 मई 1984 को हुई थी । उन दिनों छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश अलग अलग नहीं हुआ था…

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किसान आंदोलनः संयुक्त मोर्चा की बैठक में आंदोलन तेज करने का हो सकता है फैसला

तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुए आंदोलन में किसान नेताओं के निशाने पर भाजपा है। ऐसे में हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार को भी दबाव में लाने की कोशिश की जा रही है। 10 मार्च को कांग्रेस की ओर से विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है। उससे पहले संयुक्त किसान मोर्चा के…

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सोचिए, सब कुछ एक जैसा ही क्यों हो!

शंभूनाथ शुक्ल बंगाल से गुजरात तक और जम्मू से तमिलनाडु तक बीजेपी नेता “जै श्रीराम” का जयकारा लगा ही देते हैं। लेकिन भारतीय समाज की पहचान उसका वैविध्य है, उसकी एकरूपता नहीं।। उसकी राष्ट्रीय एकता उसके वैविध्य से ही उपजी है। यह वैविध्य के अंदर एकता का सूत्र कोई समझौता नही बल्कि स्वाभाविक है। इसे…

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“जो नहीं बदला है वह है ‘राजनैतिक हिंदुत्व’!”

वंदिता मिश्रा नामवर सिंह जैसे दिग्गज साहित्यकार के मार्गदर्शन में काम कर चुके पुरुषोत्तम अग्रवाल की नयी पुस्तक ‘कौन हैं भारत माता?’ प्रकाशित हुई। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सम्बंध में मिथकों को तोड़ने, सत्य को उभारने और प्रकाश को सही जगह डालने की भरपूर कोशिश की है। पुस्तक में वो नेहरू…

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इको फेमिनिज़्म नारीवाद की तीसरी लहर है : प्रोफेसर के. वनजा

 8 मार्च 2021 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में  हिंदी साहित्य परिषद्, हिंदी विभाग, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा ‘इको फेमिनिज़्म’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।गूगल मीट पर आयोजित वेबीनार में यह व्याख्यान  सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. के. वनजा द्वारा दिया गया।      स्वागत व्यक्तव्य देते हुए, कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजेश…

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हमें खाली-पीली ‘हैप्पी विमंस डे’ या महिला दिवस की बधाई सुनना अच्छा नहीं लगता

गायत्री आर्य ऑफिस में क्रेच खोलिए, मांओं को छुट्टी देने में नाक-भौं न सिकोड़िए, महिलाओं पर अश्लील चुटकुले न बनाइए. कुछ भी ऐसा करिए और तब कहिए कि आप महिलाओं का सम्मान करते हो प्रसव का दर्द और मातृत्व का सुख तब भी था जब भाषाएं और सभ्यताएं भी विकसित नहीं हुई थीं. यानी मातृत्व…

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पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं को हमेशा कमतर क्यों आंकता है ?

शिखा सर्वेश पितृसत्तात्मक समाज की सोच को बदलने के लिए राजनीतिक दलों, सरकारों एवं सामाजिक संगठनों को मिलकर काम करना होगा। इस मानसिकता के नहीं बदलने तक महिलाओं की स्थिति में सुधार संभव नहीं है। आज भी स्वतंत्र स्त्री की पराधीनता में सबसे बड़ी बाधक बात यही है कि वह हमेशा किसी न किसी के…

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महिला-विरोधी फिल्मों के बीच पितृसत्ता की बेड़ियां तोड़ती ‘द लास्ट कलर’

श्रेया हाल में ही एमज़ॉन प्राइम पर आई फिल्म ‘द लास्ट कलर’ इस पितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियों को तोड़ती हुई महिलाओं, मूलतः विधवाओं के हकों की बात करती है। बनारस में फिल्माई गई यह फिल्म महिला केन्द्रित फिल्म है जो विधवाओं के साथ होने वाले अमानवीय बर्ताव के अलावा और भी कई संजीदा विषयों के…

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