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Year: 2021

शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखिम की याचिका पर SC ने राज्य से मांगा जवाब

मेघालय की वरिष्ठ पत्रकार और शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखिम द्वारा गैर-आदिवासियों पर हमले की निंदा संबंधित फेसबुक पोस्ट के कारण उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे को मेघालय उच्च न्यायालय दारा ख़ारिज करने से इंकार करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. बुधवार,…

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क्या सर्वोच्च अदालत ने अपना रुतबा गँवा दिया है?- अपूर्वानंद

कानूनदाँ तबक़ा अदालत के रुख पर सर पकड़ कर बैठ गया है। उसका कहना है कि अदालत वह कर रही है जो विधायिका और कार्यपालिका का काम है। यह ख़तरनाक शुरुआत है। जनतंत्र में संस्थाओं के बीच कार्य विभाजन साफ़ है। अदालत ने क़ानूनों की संवैधानिकता पर विचार नहीं किया है जो उसका काम है।…

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हालात की कोख से जन्मी समझ से ही मज़बूत होगा अवामः कैफ़ी आज़मी

प्रभात  ज़िंदगी भर लाल परचम लिए घूमते रहे कैफ़ी की अवाम, उसमें निहित ऊर्जा और उसकी सत्ता में अगाध आस्था है. इसी अवाम के लिए वह सिर्फ शब्दों से आस्था नहीं गढ़ते रहे, उसके संघर्षों में लगातार साथ होकर जूझते भी रहे. सफलता-असफलता की उन्हें कोई परवाह नहीं थी. उनका दृढ़ मत रहा कि देर-सबेर…

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जब सारा हिंदुस्तान हमारा है तो खालिस्तान की बात क्यों?

पवन उप्रेती आज़ादी के बाद शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि लाखों लोग अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के बॉर्डर्स पर आकर बैठ गए हों और हालात सरकार के क़ाबू से बाहर चले गए हों। जम्हूरियत होने के चलते इस मुल्क़ में जेपी आंदोलन से लेकर अन्ना आंदोलन तक हुए हैं, जिनमें नेताओं के…

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किसान आंदोलनः सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी से अलग हुए भूपिंदर मान

किसान आंदोलन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों की एक कमिटी बनाई थी. इन चार में से एक सदस्य यानी भूपिंदर सिंह मान ने खुद को कमिटी से अलग कर लिया है. सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका है. उल्लेखनीय है कि भूपिंदर सिंह मान के नाम पर शुरू से बवाल हो…

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सरकार को बचाने की कोशिश में सुप्रीम कोर्ट ने किसानों का भरोसा खो दिया है!

प्रताप भानु मेहता सुप्रीम कोर्ट अब एक ऐसे बेढब दिखने वाले फंतासी पात्र की तरह दिखने लगा है, जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। इसका स्वरूप रहस्यमय तरीके से बदलता रहता है, मासूम चेहरा इसकी ज़हरीली फुफकार को ढँक देता है, और ज़रूरत के हिसाब से आकार बदलता रहता है। अदालत संवैधानिक क़ानूनों…

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वेब सीरीज़ क्रिमिनल जस्टिस: धारणाओं, पूर्वाग्रहों को चुनौती देता एक सघन अनुभव

सत्यम श्रीवास्तव  ‘क्रिमिनल जस्टिस’ सीजन -1, ऐसे तो कानूनी पेचीदगियों से भरी एक कहानी है लेकिन यह दर्शकों को खुद जासूस हो जाने का मौका मुहैया कराती है और शायद यही वजह है कि लगभग आठ घंटे की इस वेब सीरीज़ को एक बार देखना शुरू करने पर आप अंत देखे बगैर उठ नहीं पाते….

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विवेकानंद ने बताया था कि देशभक्ति किसे कहते हैं!

अनिल जैन जयंती विशेष: स्वामी विवेकानंद अगर आज ज़िंदा होते तो उनकी नसीहतें सुनकर हिंदू कट्टरता के प्रचारक उन्हें भी सूडो सेकुलर, शहरी नक्सली या हिंदू विरोधी करार देकर पाकिस्तान चले जाने की सलाह दे रहे होते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके पास अपना कोई…

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सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में वो ही लोग क्यों जो कृषि क़ानून के पक्षधर हैं?

प्रीति सिंह क्या यह महज संयोग है कि सुप्रीम कोर्ट गठित कमेटी के चारों सदस्य कृषि क़ानूनों के पक्षधर हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी के सदस्यों का चयन करते समय दूसरे पक्ष के लोगों को न सही, निष्पक्ष लोगों पर भी विचार नहीं किया। किसान आन्दोलन के नेताओं ने कमेटी को खारिज करने का मुख्य…

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शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के चर्चित उपन्यास क़ब्ज़े ज़माँ’ का हिंदी अनुवाद प्रकाशित

कथाकार-आलोचक शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के चर्चित उपन्यास ‘क़ब्ज़े ज़माँ’ का हिंदी अनुवाद छप गया है. हिन्दी में अनुवाद डॉ. रिज़वानुल हक़ ने किया है यह उपन्यास एक सिपाही की आपबीती के बहाने वर्तमान से शुरू होकर गुज़रे दो ज़मानों का हाल इतने दिलचस्प अन्दाज़ में बयान करता है कि एक ही कहानी में तीन ज़मानों की सामाजिक,…

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