दो घंटे नहीं बल्कि कम से कम दो हफ्ते के सुनियोजित संपूर्ण लॉकडॉउन पर विचार करें – जीवेश चौबे

बाजार का टाइम 2 घंटे कम कर दिया। अब रात 9 की बजाय शाम 7 बजे बन्द होंगे। अब रात के 2 घंटे बचाकर कोरोना के प्रभाव से क्या बचाव होगा ये तो वही बता पायेंगे जिन्होंने 7 बजे करवाया है । रोज़ नया प्रयोग ,नया फार्मूला । मगर हासिल आ रहा है शून्य। कौन हैं ये मनमाफिक फेरबदल करने वाले ? पता नहीं किसके सुझाव पर , पता नहीं कौन, कब कहां बैठकर मीटिंग ले लेता है।  कहा जा रहा है व्यापारी संघ के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा के पश्चात ये निर्णय लिया गया।  कौन बैठा? कौन-कौन से व्यवसायी संगठन बैठ गए? यह कहां से आते हैं, कौन होता है इस समिति में? अचानक से तय करते हैं कि बाजार खोल दें अचानक तय करते हैं बंद कर दें । चंद बड़े व्यापारी पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं क्या?

इन तथाकथित इलीट और बड़े व्यवसाइयों ने कभी सोचा ही नहीं कि व्यवसाय करने वालों का एक तबका वो भी है जिसका धंधा ही शाम 5-6 बजे के बाद शुरू होता है। ये हैं रोज कमाने खाने वाले छोटे, छोटे ठेलों खोमचे पर चाट गुपचुप अंडा आमलेट मूंगफली और अन्य खाद्य सामग्री बेचने वाले छोटे व्यापारी। इन्हें कभी कोई बैठक में नहीं बुलाता और न इनकी मंशा पूछी जाती है । अब ये भले लोग शराब दुकान को क्यों रात 9 बजे तक खुला रहने पर सहमत हुए ये भी बताएं। क्या इसलिए कि 7 बजे तक दुकान करो फिर शराब पियो और घर जाओ ?

अब एक तरफ सामान्य बाज़ार तो 7 बजे बंद और दूसरी तरफ शराब दुकान रात 9:00 बजे तक खुली रहेगी ।  तो सवाल यह उठता है यदि शराब दुकान खुली रहेगी तो चखना भी चाहिए होगा, मगर चखना वालों को तो अनुमति नहीं है । ज़रा सोचिए कहां जाएंगे वह बेचारे छोटे-छोटे ठेले खोमचे लगाकर सामान बेचने वाले ? उनका क्या होगा?  गौरतलब है कि छोटे चाट गुपचुप, मूंगफली , समोसा नाश्ता, अंडा आमलेट, चाइनीज़ कॉन्टिनेंटल फूड कुल्फी, फलूदा जैसे ठेले खोमचे वालों का धंधा तो शाम 6 बजे के बाद ही शुरू होता है और आप उन्हें 7:00 बजे बंद करवा देंगे तो क्या होगा इनका? कभी किसी ने सोचा इन छोटे छोटे व्यवसाइयों के बारे में जो रोज कमाकर रोज खाते है । और ये सभी जानते हैं कि  पिछले लगातार तीन-चार महीनों से ये तबका गंभीर आर्थिक संकटों से गुज़र रहा है। परिवार के भरण पोषण के लिए, आजीविका के लिए,  ये लगातार संघर्ष कर रहे हैं। 

    न तो इनका कोई प्रतिनिधि ऐसी बैठकों में होता है और ना ही यह बैठक कराने वाली इन लोगों को बुलाना पसंद करते हैं । इन लोगों की नजर में फुटपाथ पर धंधा करने वाले यह छोटे-छोटे लोग शहर में मवाद की तरह होते हैं जो शहर की खूबसूरती पर धब्बा होते हैं  और इन बड़े लोगों की आवाजाही में व्वधान ही उत्पन्न करते हैं । सारा बाजार चंद बड़े व्यापारियों के चंगुल में फंसकर रह गया है। क्या बाजार सिर्फ इन्हीं बड़े लोगों का है? प्रशासन और सरकार इस पर कुछ सोचती ही नहीं, एक फरमान से जारी कर देती है आज शाम को खुलेगा कल सुबह नहीं खुलेगा परसों रात तक चलेगा जैसे मनमाने फरमान जारी कर देते हैं। 

यह सही है कि प्रदेश में बढ़ते महामारी के खतरे को नियंत्रित करना ज़रूरी है मगर क्या ऐसे दिशाहीन अनियोजित कार्यप्रणाली अथवा फरमान से कोई सकारात्मक परिणाम मिल सकेंगे? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। एक या दो घंटे पहले अथवा बाद में बन्द करके कोई ठोस नतीजा नहीं मिल सकता । विशेषज्ञों का मत है कि कम से कम 2 सप्ताह तक लगातार दूरी बनाकार ही कोई सकारात्मक परिणाम हासिल हो सकता है । हाल ही में अनलॉक-1 और अनलॉक-2 के दौरान बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कई प्रदेशों में इस तरह के लम्बे 2-3 सप्ताह के समपूर्ण लॉकडॉउन को पुनः लागू कर दिया गया है ।

मर्ज़ बढता गया ज्यों ज्यों दवा की । हमारे प्रदेश में भी अनलॉक-1 और अनलॉक-2 के दौरान लगातार संक्रमितों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है ।  एक बार फिर सम्पूर्ण लॉक डाउन की जरूरत महसूस होने लगी है।विशेषज्ञों और डॉक्टरों का स्पष्ट मानना है कि महामारी के विस्तार की चेन को तोड़ने कम से कम 15 दिन की फिजिकल दूरी आवश्यक होती जा रही है। हालांकि ये निर्णय बहुत तकलीफदेय और कठिन प्रतीत होता है मगर प्रदेश और समाज की बेहतरी और महामारी पर नियंत्रण के लिए यही कारगर सिद्ध हो सकता है। सप्ताह में एक दो दिन या रोज दो घंटे पहले बन्द कर देने से वो चेन तो नहीं टूटती जिससे महामारी के फैलाव पर अंकुश लगाया जा सके।

इस तरह एक दो घंटे पहले बंद करने या रात  अथवा सप्ताहांत के कर्फ्यू से कोई ठोस परिणाम हासिल नहीं किया जा सकता । सरकार को डॉक्टर, विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों से सलाह मशविरा कर प्रदेशहित में, भले ही कठोर क्यों न हो , मगर उचित निर्णय लेना चाहिए । संपूर्ण प्रदेश में आवागमन, मेल मुलाकात, यहां तक कि बेकार में घर से निकलना भी कम से कम आगामी दो सप्ताह तक प्रतिबंधित करना चाहिए। सरकार को इस दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार कर तात्कालिक नीति की बजाय विशेषज्ञों से सलाह मशविरा कर एक सुनियोजित रणनीति पर अमल करना होगा जिसमें आर्थिक चुनौतियों के रूप में  यह भी ध्यान रखना होगा कि आमजनो को कम से कम नुकसान हो । ऐसी योजना जल्द से जल्द लागू करनी होगी तभी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।

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