कहानीः बुलबुल और गुलाब – ऑस्कर वाइल्ड

ऑस्कर वाइल्ड (15 अक्टूबर 1854-30 नवम्बर 1900-पेरिस) – अद्भुत कल्पनाशीलता और प्रखर विचारों के धनी ऑस्कर वाइल्ड ने कई उल्लेखनीय  कविता, कहानी,उपन्यास और नाटक लिखे। अँग्रेजी साहित्य में उनका नाम प्राथमिकता से लिया जाता है। विश्व की कई भाषाओं में उनकी कृतियाँ अनुवादित हो चुकी हैं। ‘द बैलेड ऑफ रीडिंग गोल’ और ‘डी प्रोफनडिस’, ‘द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’ उनकी सुप्रसिद्ध कृतियाँ हैं। लेडी विंडरम’र्स फेन और द इम्पोर्टेंस ऑफ बीइंग अर्नेस्ट जैसे नाटकों ने भी खासी लोकप्रियता अर्जित की। उनकी लिखी परिकथाएँ भी विशेष रूप से पसंद की गईं। आज पढ़ें उनकी प्रसिद्ध कहानी The Nightingale and the Rose  का हिन्दी अनुवाद-

बुलबुल और गुलाब ऑस्कर वाइल्ड

“उसने कहा, वह मेरे साथ नाचेगी, अगर मैं उसे लाल गुलाब ला दूँ तो, ” युवा-छात्र ने रोते हुए कहा; “लेकिन मेरे सारे उपवन में लाल गुलाब कहीं है ही नहीं।”
शाहबलूत वृक्ष की टहनियों में घोंसले में बैठी बुलबुल ने उसे रोते हुए सुना, पत्तों की ओट से झाँक कर देखा और हैरान हो गई।
“कोई लाल गुलाब नहीं मेरे सारे उपवन में !”वह चिल्लाया और और उसकी सुन्दर आँखों में आँसू उमड़ आए। “आह, कितनी छोटी-छोटी बातों पर निर्भर होती है ख़ुशी! मैंने पढ़ा है जो भी बुद्धिमानों ने लिखा है, दर्शन-शास्त्र के सब रहस्य भी मैं जानता हूँ, फिर भी एक लाल गुलाब की कमी ने मेरा जीना दूभर कर दिया है!”
“अन्तत: यह रहा असली प्रेमी! बुलबुल ने कहा । “न जाने कितनी ही रातों से मैंने इसी के बारे में गाया है, भले ही मैं इसे नहीं जानती; कितनी ही रातें गा-गा कर मैंने इसकी कहानी तारों को सुनाई है, और अब यह मेरे सामने है! इसके बाल सम्बूल की मंजरियों की तरह काले हैं और इसके होंठ इसकी चाहत के गुलाब-से लाल हैं लेकिन हसरतों ने इसके चेहरे को हाथी-दाँत-सा पीला कर दिया है। दु:ख ने इसके माथे पर अपनी मुहर लगा दी है।”
“राजकुमार कल नृत्य-उत्सव कर रहा है।”युवा प्रेमी बुदबुदाया, “और मेरी प्रेयसी भी वहीं होगी। अगर मैं उसे लाल गुलाब ला दूँ तो वह सुबह तक मेरे साथ नाचेगी । अगर मैं उसे लाल गुलाब ला दूँ तो मैं उसे अपनी बाहों में भर सकूँगा और उसका हाथ मेरे हाथ में कसा होगा लेकिन मेरे उद्यान में कोई लाल गुलाब नहीं है, इसलिए मैं अकेला बैठा रहूँगा और वह मेरे पास से गुज़र जाएगी, मुझे देखे बिना और मेरा दिल टूट जाएगा।”
“यह वास्तव में ही प्रेमी सच्चा प्रेमी है!” बुलबुल ने कहा । जिसके बारे में मैं गाती हूँ उसे व्यथित करता है; मेरे लिए जो आनन्द है, उसके लिए व्यथा है। प्रेम सचमुच अद्भुत वस्तु है! यह माणिकों से अधिक मँहगा और विमल दूधिया रत्नों से ज़्यादा कीमती होता है।मोतियों और दाड़िमों से इसे खरीदा नहीं जा सकता; न यह दुकानों में बिकता है ; न ही इसे दुकानदारों से इसे ख़रीदा जा सकता है और न ही यह सोने के तराज़ू पर तुलता है।”
“संगीतकार अपनी दीर्घा में बैठेंगे”, युवा छात्र बोला, “और अपने सुरीले साज़ बजाएँगे और मेरी प्रेयसी वीणा और वायलिन की धुन पर नाचेगी । वह इतना बढ़िया नाचेगी कि उसके पाँव ज़मीन को छूएँगे भी नहीं ।चटक वस्त्र पहने दरबारियों का हजूम उसके इर्द-गिर्द होगा, लेकिन वह मेरे साथ नहीं नाचेगी, क्योंकि मेरे पास लाल गुलाब उसे देने को नहीं है;”उसने ख़ुद को घास पर पटक लिया, अपना मुँह अपनी हथेलियों में छिपा लिया और रोने लगा।
“यह रो क्यों रहा है ?”एक नन्ही हरी छिपकली ने पूछा और उसके पास से होती हुई दुम उठाए गुज़र गई।
“आख़िर क्यों ?”धूप की किरण पर हवा में तैरती तितली ने कहा।
“आख़िर क्यों रो रहा है यह? ” नन्हें गुलबहार फूल ने फुसफुसाकर अपने पड़ोसी के कान में कहा।
“वह लाल गुलाब के लिए रो रहा है, “बुलबुल ने कहा।
“लाल गुलाब के लिए ?”वे सब चिल्लाए, “कितना बड़ा मज़ाक है यह!”और हरी छिपकली जो ज़रा दोषदर्शी थी, ज़ोर से हँस दी।
लेकिन बुलबुल जानती थी छात्र के दु:ख का रहस्य, वह शाहबलूत वृक्ष पर चुपचाप बैठी प्रेम के रहस्य के बारे में सोच रही थी ।
अचानक उसने उड़ान के लिए अपने पर तोले, और ऊँचे आकाश में उड़ने लगी।साये की तरह वह उपवन में से उड़ी और साये की ही तरह उसने उपवन पार भी कर लिया।
घास वाले प्लाट के ठीक बीच में बहुत सुन्दर गुलाब का पौधा था, पौधे को देख बुलबुल उसकी एक टहनी पर बैठ गई।
“मुझे एक लाल गुलाब दे दो, “वह चिल्लाई, “और बदले में मैं तुम्हारे लिए अपना सबसे मधुर गीत गाऊँगी।”
लेकिन पौधे ने ‘इन्कार’ में अपना सिर हिला दिया।
“मेरे गुलाब सफ़ेद हैं, “उसने कहा, “समुद्र के फेन की तरह, पहाड़ों पर जमी बर्फ़ से भी सफ़ेद। लेकिन तुम मेरे भाई के पास जाओ जो धूप-घड़ी के पास उगा है।”
बुलबुल धूप-घड़ी के पास उगे गुलाब के पौधे के पास गई।
“मुझे एक लाल गुलाब दे दो, “उसने पुकार लगाई, “और बदले में मैं तुम्हारे लिए अपना सबसे मधुर गीत गाऊँगी।”
“मेरे गुलाब पीले हैं, “उत्तर मिला, “तृणमणि सिंहासन पर बैठी जलपरी के बालों जैसे पीले; घास काटे जाने से पहले वाली चरागाह में खिले नरगिस के फूलों से भी ज़्यादा पीले। लेकिन तुम छात्र की खिड़की के नीचे उगे मेरे भाई के पास जाओ जो शायद तुम्हारी इच्छा पूरी कर दे।”

बुलबुल छात्र की खिड़की के नीचे उगे गुलाब के पौधे के पास गई।
“मुझे एक लाल गुलाब दे दो, “उसने पुकार लगाई, “और बदले में मैं तुम्हारे लिए अपना सबसे मधुर गीत गाऊँगी।”
लेकिन उस पौधे ने भी इन्कार में अपना सिर हिला दिया।”
“मेरे गुलाब लाल हैं, “उसने कहा ” फ़ाख़्ता के पंजों की तरह लाल और समुद्री कन्दराओं में झूल रहे प्रवाल-पंखों से भी ज़्यादा लाल। लेकिन सर्दी ने मेरी शिराओं को जमा दिया है, कोहरे ने मेरी पंखुड़ियाँ दबा ली हैं और तूफ़ान ने मेरी टहनियाँ तोड़ दी हैं, और अब सारा साल मुझपर गुलाब नहीं खिलेंगे।”
“लेकिन मुझे तो बस एक लाल गुलाब चाहिए ।”बुलबुल चिल्लाई, “बस एक लाल गुलाब, क्या कोई उपाय नहीं कि मुझे एक लाल गुलाब मिल सके ?”
“उपाय है, लेकिन इतना भयानक कि तुम्हें बताने का साहस मुझमें नहीं है।”
“अगर तुम्हें गुलाब चाहिए”, पौधे ने कहा, “तो तुम्हें इसे चांदनी रात में संगीत से रचना होगा और अपने हृदय के रक्त से इसे सींचना होगा। अपना सीना मेरे काँटों से सटा कर तुम्हें गाना होगा। रातभर तुम्हें मेरे लिए गाना होगा, काँटे को तुम्हारे दिल में धँस जाना होगा, तुम्हारे रक्त को मेरी धमनियों बह कर मेरा हो जाना होगा।”
“लाल गुलाब के लिए मृत्यु एक बड़ा सौदा है, “बुलबुल ने कहा “और जीवन सबको प्रिय है। हरे जंगल में बैठ कर सूर्य को उसके स्वर्णिम रथ में और चाँदनी को उसके मोतियों के रथ में देखना मोहक है। सम्बूल की सुगंधि मधुर है, मधुर हैं घाटी में छिपे ब्लू-बेल्ज़ और पहाड़ों में बहने वाली समीर, परन्तु जीवन से बेहतर है प्रेम, और फिर मनुष्य के दिल की तुलना में एक पंछी का दिल है भी क्या ?”
उसने अपने भूरे पंख उड़ान के लिए फैलाये और हवा में उड़ गई। साये की तरह वह उपवन के ऊपर से उड़ी और साये की ही तरह उसने उपवन पार भी कर लिया।
युवा छात्र अभी भी घास पर ही लेटा हुआ था, जहाँ बुलबुल उसे छोड़कर गई थी, आँसू उसकी ख़ूबसूरत आँखों से अभी सूखे नहीं थे।
“ख़ुश हो जाओ, “बुलबुल ने कहा, “ख़ुश हो जाओ; तुम्हें मिल जाएगा तुम्हारा लाल गुलाब।”मैं उसे चांदनी रात में संगीत से रचूँगी और अपने हृदय के रक्त से सींचूंगी।बदले में बस तुम इसी तरह सच्चे प्रेमी बने रहना क्योंकि प्रेम दर्शनशास्त्र से अधिक समझदार है; शक्ति से भी अधिक शक्तिशाली है, भले ही शक्ति भी शक्तिशाली है, तृणमणि के रंग के हैं उसके पंख और शरीर भी उसका तृणमणि के ही रंग का है। मधु से मधुर हैं उसके होंठ और उसकी साँसें हैं गुग्गल धूप की ख़ुश्बू जैसी।”
छात्र ने घास से ऊपर सर उठाकर देखा, सुना भी, लेकिन समझ नहीं पाया बुलबुल उससे क्या कह रही थी क्योंकि वह तो सिर्फ़ किताबों में लिखी बातें ही समझ पाता था।
लेकिन शाहबलूत पेड़ समझ गया, उदास हुआ क्योंकि वह नन्ही बुलबुल का बहुत बड़ा प्रशंसक था, बुलबुल ने अपना घोंसला भी उसी की टहनियों में बनाया हुआ था।
“मेरे लिए एक अंतिम गीत गा दो”, उसने फुसफुसा कर कहा ; “तुम्हारे चले जाने के बाद मैं अकेला हो जाऊँगा”
तब बुलबुल ने शाहबलूत के लिए गाया उसकी आवाज़ ऐसी थी मानो चाँदी के मर्तबान में पानी बुदबुदा रहा हो।”
बुलबुल गा चुकी तो छात्र उठा और उसने अपनी जेब से पेंसिल और नोट-बुक निकाली। “इसके पास रूप-विधान तो है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता लेकिन क्या इसके पास संवेदना भी होगी? मुझे डर है, शायद नहीं होगी। वास्तव में वह भी अधिकांश कलाकारों की ही तरह है। उसके पास केवल शैली है, लेकिन हार्दिकता रहित। वह दूसरों के लिए बलिदान नहीं देगी।
वह केवल संगीत के बारे में सोच सकती है और सब जानते है कि कलाएँ स्वार्थी होती हैं। फिर भी, यह स्वीकार करना होगा कि कि उसकी आवाज़ में मधुर स्वर हैं। लेकिन दु:ख की बात तो यह है कि ये मधुर स्वर निरर्थक हैं। इनका कोई व्यवहारिक लाभ नहीं है।”
और वह अपने कमरे में जाकर बिस्तर में लेट गया और अपनी प्रेयसी को याद करने लगा, काफ़ी देर बाद वह सो गया।
और जब चाँद आकाश में चमक उठा, बुलबुल उड़ कर गुलाब के पौधे पर जा बैठी और उसने काँटे से अपना वक्ष सटा दिया। सारी रात वह काँटे से अपना वक्ष सटाए गाती रही, ठण्डा बिल्लौरी चाँद नीचे झुक आया और उसे गाते हुए सुनता रहा । सारी रात वह गाती रही और काँटा उसके सीने में गहरे से गहरा धँसता गया और उसका जीवन-रक्त उससे दूर बह चला।
उसने गाया, सबसे पहले लड़की और लड़के के दिल में प्रेम उपजने के बारे में। उसने गाया गाने पर गाना और गुलाब के पौधे की सबसे ऊँची टहनी पर पंखुड़ी-पंखुड़ी कर एक सुन्दर गुलाब खिलने लगा । पहले तो यह हल्का पीला-सा था, नदी पर छाई धुन्ध की तरह, हल्का पीला-सा, सुबह की धूप के पैरों की तरह; चाँदी-सा, उषा के पंखों-सा । चाँदी के दर्पण में गुलाब की प्रतिछाया -सा; पानी के तालाब में गुलाब की परछाई -सा; कुछ ऐसा ही था वह गुलाब जो पौधे की सबसे ऊँची टहनी पर खिला था।
परन्तु पौधे ने चिल्ला कर बुलबुल से कहा कि वह अपने वक्ष में काँटे को ज़ोर से भींच ले। “ज़ोर से भींचो, नन्ही बुलबुल! और भी ज़ोर से, इससे पहले कि गुलाब पूरा होने से पहले दिन हो जाये।”
बुलबुल ने काँटे को और भी ज़ोर से भींच लिया, उसके गाने की आवाज़ ऊँची से ऊँची होने लगी, क्योंकि वह पुरुष और स्त्री की आत्मा में चाहत के जन्म लेने के बारे में गा रही थी।
और गुलाब की पत्तियों में हल्की-सी गुलाबी रंगत आ गई। गुलाबी रंगत जो दुल्हन के होंठ चूमते हुए दूल्हे के चेहरे पर आती है। परन्तु काँटा अभी बुलबुल के सीने में धँसा नहीं था इसलिए गुलाब का हृदय अभी श्वेत ही था। क्योंकि केवल बुलबुल के हृदय का रक्त ही गुलाब के हृदय को गहरा रक्तिम लाल कर सकता है।
और पौधे ने चिल्ला कर बुलबुल से कहा कि वह अपने वक्ष में काँटे को ज़ोर से भींच ले। “ज़ोर से भींचो, नन्ही बुलबुल! और भी ज़ोर से, इससे पहले कि गुलाब पूरा लाल होने से पहले दिन ढल जाये।”
इसलिए बुलबुल ने काँटे को पूरे ज़ोर से भींच लिया, और काँटे ने उसके हृदय को छलनी कर दिया। बुलबुल की दर्दभरी एक तेज़ चीख़ निकली। असहनीय थी उसकी पीड़ा। प्रचण्ड हो गया उसका गायन, क्योंकि वह मृत्यु से सम्पूर्ण होने वाले प्रेम के बारे में गा रही थी, उस प्रेम के बारे में जो कब्र में जाकर भी जीवित रहता है। और वह अद्भुत गुलाब रक्तिम हो गया पूर्वी आकाश-सा। रक्तिम था गुलाब की पंखुड़ियों का रंग और माणिक-सा गहरा लाल था उसका हृदय।
लेकिन बुलबुल की आवाज़ हल्की पड़ गई, फड़फड़ा उठे उसके नन्हें पंख, और उसकी आँखों में एक पर्त्त-सी आ गई। मद्धिम होता गया उसका गायन, अवरुद्ध होने लगा उसका कण्ठ।
और फिर उसने अपने संगीत की अंतिम स्वर-लहरी बिखेर दी। चाँद इसे सुनकर उषा को भूल गया और आकाश में जमा रहा। लाल गुलाब ने इसे सुना, आनन्दातिरेक में काँप उठा और अपनी पंखुड़ियाँ सुबह की ठण्डी हवा के लिए खोल दीं। गूँज ने इसे पहाड़ों की अपनी बैंगनी कन्दरा तक ले जाकर सोए हुए गडरियों को उनके सपनों से जगा दिया। नदी के सरकंडों से होती हुई गूँज उसका संदेश समुद्र तक ले गई।
‘देखो, देखो!’ पौधे ने कहा, “गुलाब अब सम्पूर्ण हो चुका है, “परन्तु बुलबुल ने कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि वह लम्बी घास में मृत पड़ी थी। उसके दिल में काँटा चुभा हुआ था।
और दोपहर को छात्र ने अपनी खिड़की खोलकर बाहर देखा।
“कितना भाग्यशाली हूँ मैं!”वह चिल्लाया, “यह रहा गुलाब ! अपने जीवन में मैंने तो इतना सुन्दर गुलाब नहीं देखा।यह इतना सुन्दर है कि अवश्य इसका कोई लम्बा -सा लातीनी नाम होगा, “और उसने झुककर गुलाब तोड़ लिया।
हैट पहने, लाल गुलाब हाथों में लिए, वह प्रोफ़ेसर के घर की ओर भागा। प्रोफ़ेसर की बेटी, रील पर नीला रेशमी धागा लपेटते हुए, दरवाज़े में बैठी थी, और उसका छोटा-सा कुत्ता उसके पास बैठा था।
“तुमने कहा था तुम मेरे साथ नाचोगी अगर मैं तुम्हें लाल गुलाब ला दूँ तो, “छात्र चिल्लाया, “यह रहा विश्व का सबसे अधिक लाल गुलाब। तुम इसे अपने दिल के बिल्कुल पास सजाओगी और जब हम नाचेंगे तब मैं तुम्हें बताऊँगा कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ।”लेकिन लड़की ने भृकुटी तान ली।
“लेकिन यह तो मेरी पोशाक से मेल ही नहीं खाता और, प्रबन्धक के भतीजे ने मेरे लिए कुछ असली मणियाँ भिजवाई हैं, और सब जानते हैं कि मणियाँ फूलों से ज़्यादा कीमती होती हैं।”
“मैं कसम खा कर कहता हूँ कि तुम बहुत कृतघ्न हो, “छात्र ने नाराज़ हो कर कहा, और फूल को गली में फेंक दिया जहाँ से वह गन्दे नाले में गिर गया और एक ठेले के पहिए ने उसे कुचल दिया ।
“कृतघ्न !”लड़की ने कहा, “तुम कितने अशिष्ट हो और फिर, तुम हो भी कौन? बस एक छात्र !मुझे क्यों तुम पर विश्वास नहीं है? भले ही तुम्हारे जूतों में चाँदी के बकल्ज़ हैं, लेकिन वे तो प्रबन्धक के भतीजे के जूतों में भी हैं।”और वह अपनी कुर्सी से उठकर घर के भीतर चली गई।
“प्रेम भी कितनी हास्यास्पद चीज़ है!”छात्र ने कहा और वहाँ से चल दिया। यह तो तर्क-शास्त्र की तुलना में आधा भी लाभदायक नहीं क्योंकि इससे कुछ भी सिद्ध नहीं होता, और यह सदा हमें उन चीज़ों के बारे में बताता है जो कभी वास्तव में घटती ही नहीं, और हमें उन चीज़ों पर विश्वास करने को बाध्य करता है जो सत्य नहीं होतीं । वास्तव में प्रेम अव्यावहारिक है, और आज के युग में व्यावहारिक होना ही सबकुछ है, मैं फिर दर्शनशास्त्र और तत्व-मीमांसा का अध्ययन ही करूँगा।”
अपने कमरे में लौट कर उसने एक बड़ी-सी धूल-सनी किताब निकाली और पढ़ने लगा।
(अनुवाद: द्विजेन्द्र द्विज)

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