छत्तीसगढ़ के रंगमंच में सितारा हैसियत रखने वाले इस शख्स के अंदर अदबाे आदाब का कीमती खज़ाना था ,यह व्यक्ति चलता था ताे इसके साथ साथ सभ्यता चलती थी , यह व्यक्ति सच्चाई, ईमानदारी का प्रतीक था, वामपंथी विचारधारा का अलमबरदार था, न इसे दाैलत की भूख थी न श्रेय लेने की प्यास | कामरेड था और माैजूदा निज़ाम में कामरेड हाेना आसान नही है|
आबिद भाई में नाटय संगीत की गहरी समझ थी, उनकी आवाज़ में दर्द था, लरज़िश थी, सम्माेहन था आैर इससे भी बड़ी बात यह थी कि उनकी आवाज़ में ईमानदारी थी , ख़राब काे सुधार देने की तड़प थी, ज़ुल्म के ख़िलाफ़ गुस्सा था आैर यही वजह है कि वाे जनगीत गाते थे , गायक ताे सैकड़ाे है लेकिन जनगीत गाने की हैसियत सब की नही है | जनगीत गाने के लिये सिर्फ़ अच्छी आवाज़ ही पर्याप्त नही है अच्छा किरदार हाेना भी ज़रूरी है | आवाज़ आैर जज़्बा एैसा कि आवाज़ हलक से निकलती ताे फ़लक तक जाती | फ़र्श वाले ताे लाभांवित हाे चुके अब अर्श वालाे की बारी है |
आबिद भाई नाटकाे के काबिल अभिनेता थे, नाटय संस्था समता से नाटय जगत में पहचान बनाने वाले आबिद अली प्रधान रायपुर के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक प्रदीप भट्टाचार्य के पसंदीदा पसंदीदा अभिनेता थे | बहुत ही शालीन, सभ्य आैर अनुशासित रंगकर्मी हाेने के कारण हर निर्देशक इनके साथ आैर बेहतर से बेहतर रंगमंच करने की ललक के कारण हर निर्देशक के साथ ये काम करना चाहते थे |
आबिद अली के कुछ चर्चित नाटक थे, समुद्र का स्वाद नमकीन, मैड़म फ़ालसी आप जाईये, पंछी एैसे आते है, अंधा युग, अंधाे का हाथी, मुल्ला नसीरूद्दीन , रामलीला आदि आदि | नाटकाे में संगीत आैर अभिनय ही इनका क्षेत्र था लेकिन आबिद भाई ने एक नाटक भी निर्देशित किया था जिसका नाम था सिंहासन खाली है | कबीरा खड़ा बाज़ार में, इस नाटक में गायक अभिनेता के रूप में आबिद अली ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन किया था |
आबिद भाई का इप्टा में आना उनके जीवन का महत्वपूर्ण लम्हा था, उन्हे इप्टा में आना ही था, वाे जनमे ही इप्टा के लिये थे | इप्टा की विचारधारा आैर आबिद अली की साेच एक जैसी थी | आबिद भाई ने इप्टा के नाटकाे सिर्फ अभिनय ही नही किया बल्कि प्रांतीय आैर राष्ट्रीय स्तर पर इप्टा के महत्वपूर्ण पद पर भी रहे |
इप्टा में आने के बाद मिनहाज असद आैर आबिद अली की जाेड़ी ने रायपुर के रंगमंच काे संपन्न कर दिया | इनके काम की लम्बी सूची है | असद आबिद की जाेड़ी सिर्फ़ इप्टा आैर कला जगत में ही नही पहचानी जाती थी बल्कि इनकी दाेस्ती के किस्से ताे रायपुर की गली गली आैर चप्पे चप्पो में मशहूर रहे है | अगर मेरी आबिद भाई के साथ एक हज़ार मुलाकते है ताे उसमें 999 बार वाे असद भाई के साथ थे |
आबिद भाई मेरी बहन आैर भानजी के पड़ोसी थे, बहन आैर भांजी ने बताया कि आबिद भाई की एक बहुत ही समझदार आैर ज़िम्मेदार बेटी है जाे इन दिनाे बेटे की भूमिका में रही, साेचिये आबिद भाई कितने अच्छे पिता थे जाे उन्हाेने अपनी बेटी काे इतनी अच्छी तरबियत दी | आबिद मेरी जान जानता हूं माैत ताे बरहक है, हर आने वाले काे एक दिन जाना है, यह भी जानता हूं जाकर काेई नही लाैटता फिर भी तुम्हारी अच्छाई, नेकी, भलमानसता यह कहने काे विवश कर रही है – आे जाने वाले हाे सके ताे लाैट आना |
अख्तर अली प्रसिद्ध नाट्य लेखक एवं समीक्षक हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।