वक्त तो सितम ढहाए हुए है । इस कोविड 19 ने जैसे वक्त को रोक ही तो दिया है, हालांकि जिंदगी चल रही है । वैसे ही चल रही है जैसे सांस चलती है । बरसों पहले कागज़ के फूल फिल्म में वहीदा रहमान जब श्वेत- श्याम परदे पर गा रही थी…
(इंदौर- ) 1 मई सारे विश्व में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। अमेरिका के षिकागो शहर में 1886 में अपने हकों की खातिर जिन मज़दूरों ने शहादत दी, यह उनकी याद में मनाया जाता रहा है। पिछले 134 वर्षों के इतिहास में यह पहला अवसर था जब अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर कोविड-19…
कहा जा सकता है कि कवि या उपन्यासकार की तरह ही पत्रकार की पहली दिलचस्पी जीवन और लोगों में होनी चाहिए। जैसे साहित्य के बारे में कहा जाता है कि वह सबसे अधिक वेध्य का पक्षधर होता ही है, वैसे ही पत्रकारिता अनिवार्यतः उसकी तरफ़ से की जाती है। यह कहना अनैतिक है कि पत्रकारिता…
कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में किए गए लॉकडाउन के बाद मजदूरों में अफरा तफरी मच गई। इसके चलते सरकार ने तुरत-फुरत में कई घोषणाएं की। इसमें एक घोषणा थी, मजदूरों को आर्थिक सहायता दी जाएगी। लेकिन क्या मजदूरों को यह पैसा मिल पाया, किस कानून के तहत यह…
लॉकडाउन 3.0 के साथ देश के ज्यादातर हिस्सों में शराब की दुकानें खुल जाएंगी. इसके साथ ही बिड़ी-सिगरेट-तंबाकू-गुटखा की दुकानें भी खुल जाएंगी. ये आदेश ग्रीन और ऑरेंज जोन तथा ग्रामीण इलाकों के लिए है. इसके अलावा रेड जोन में भी हॉटस्पॉट या कंटेनमेंट एरिया के बाहर इन दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी गई है. रेड जोन…
कोरोना विषाणुओं ने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया है । अपने शहर को भी इसी संकट में देख रहा हूँ । प्रकृति के साथ, अपने शहर के साथ खिलवाड़ करने की सज़ा भी है यह । अपनी अरपा को लगभग गंवा चुके हम लोग तो जैसे कुछ भी समझने को तैयार ही नहीं…
लॉक डॉउन की वजह से जब गावों , शहरों में स्वतः शराब दुकाने बंद हो गई तो पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने राहत की सांस ली है । आज लगभग सवा महीने से शराब दुकाने बंद होने से तमाम सामाजिक उचक्काई, घरेलू हिंसा और अपराध काफी हद तक नियंत्रित हैं । अब जबकि नई…
फीस की रकम लेकर भीलवाड़ा सीधे ही स्कूल जा पहुंचा। आवेदनपत्र आदि की सारी औपचारिकताएं पूरी कर, फीस की रसीद ले ली। एडमिशन हो गया। काम पक्का हो गया। अब किताबें-कॉपियाँ-स्टेशनरी? देखा जाएगा। मूल उद्देश्य तो पूरा हुआ। मेरे जीवन का असली संघर्ष यहीं से प्रारंभ होता है। जब तक हमीरगढ़ में था, सारा मोर्चा…
सुप्रसिद्ध साहित्यकार,प्रतिष्ठित व्यंग्यकार व संपादक रहे श्री प्रभाकर चौबे लगभग 6 दशकों तक अपनी लेखनी से लोकशिक्षण का कार्य करते रहे । उनके व्यंग्य लेखन का ,उनके व्यंग्य उपन्यास, उपन्यास, कविताओं एवं ससामयिक विषयों पर लिखे गए लेखों के संकलन बहुत कम ही प्रकाशित हो पाए । हमारी कोशिश जारी है कि हम उनके समग्र लेखन को प्रकाशित कर सकें…
अपने इस सूनसान हुए शहर में बरसों पहले टुंगरूस की आवाज़ गूंजती थी । कुएं स्वच्छ रखने की कला और कड़े श्रम में माहिर टुंगरूस को सत्यदेव दुबे मुंबई ले गए थे । ले गए यानी टुंगरूस के पात्र को । नसीरुद्दीन शाह ने उस पात्र को अभिनीत किया था…
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