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Month: October 2020

भारतीय विज्ञान में वामपंथ की अनकही कहानी

प्रबीर पुरकायस्थ  मेघनाद साहा, हुसैन ज़हीर, साहब सिंह सोखे जैसे कई वैज्ञानिक न सिर्फ़ भारतीय विज्ञान के संस्थापक थे, बल्कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के क़रीबी भी थे। कलकत्ता में मेघनाद साहा के साथ वैज्ञानिकों का एक युवा समूह 1930 के दशक में विज्ञान, योजना और सोवियत संघ के समाजवादी प्रयोग में लगा हुआ था।…

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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के असली जय-वीरू तो ओम पुरी और नसीरुद्दीन शाह ही थे!

शुभम उपाध्याय नसीरुद्दीन शाह की आत्मकथा ‘एंड देन वन डे’ में दर्ज उनके अजीज दोस्त ओम पुरी से जुड़े कुछ अनोखे किस्से. अपनी ऑटोबॉयोग्राफी ‘एंड देन वन डे’ में भी नसीर ने ओम पुरी के बारे में कुछ अनोखे किस्से दर्ज किए. इन किस्सों और नसीर की नजर से भी उन ओम पुरी को देखा…

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कहानीः ऐसे ही किसी दिन – गाब्रिएल गार्सिया मार्केज

गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ (6 मार्च 1927 – 17 अप्रैल 2014) विश्वविख्यात साहित्यकार.  वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रहा।  इसके चलते उन पर अमेरिका और कोलम्बिया सरकारों द्वारा देश में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगया गया। प्रथम कहानी-संग्रह लीफ स्टार्म एंड अदर स्टोरीज 1955 में प्रकाशित: नो वन नाइट्, टु द कर्नल एंड अदर स्टोरीज और आइज़ ऑफ ए डॉग श्रेष्ठ कहानी संग्रह…

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विश्वगुरु बनने की चाह रखने वाला भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में 94वें पायदान पर

अजय कुमार ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार 2020 में दुनिया भर के 107 देशों में से भारत 27.2 स्कोर के साथ 94वें रैंक पर है। भारत से 21 पायदान ऊपर नेपाल है और 19 पायदान ऊपर बांग्लादेश है। इससे साफ है कि जिन 107 देशों का डेटा इस साल साझा किया गया है, उनमें से…

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स्मिता पाटिल : एक ऐसी अभिनेत्री जिसे लेकर सभी ने जिंदगी सोची, व्यर्थ के दिवास्वप्न नहीं जिए

स्मिता पाटिल पर यह लेख दिग्गज साहित्यकार शरद जोशी ने 1986 में नवभारत टाइम्स के लिए लिखा था  स्मिता अभिनय में अपनी उम्र से बड़ी हो जाती थी. वह केवल गहरे अहसास की मदद से अपनी अनुभव-सीमा को लांघ जाती थी. इस मामले में वह अपनी समकालीन भारतीय अभिनेत्रियों से बड़ी थी  स्मिता समझदार अभिनेत्री…

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भारतीय संविधान और मुस्लिम अल्पसंख्यक–राम पुनियानी

क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि भारतीय संविधान बहुवादी और लोकतंत्रात्मक भारत चाहता है भारतीय संविधान की नजर में कोई धर्म न तो विदेशी और न देशी. सभी धर्म सर्वव्यापी हैं और इसलिए संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने और उसका  प्रचार करने का अधिकार देता…

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क्या देश को राज्यपालों की जरूरत है?

विकास बहुगुणा भगत सिंह कोश्यारी की एक चिट्ठी के बाद यह बहस फिर से छिड़ गई है कि क्या राज्यपाल नाम की संस्था उन उम्मीदों को पूरा कर रही है जिनकी उससे अपेक्षा की गई थी. राज्यपालों पर इस तरह के आरोप अब इतने आम हो चुके हैं कि इनसे कोई चौंकता नहीं है. कभी…

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एक ‘सिविल सोसायटी’ के राज में दूसरे का ‘वध’ और तीसरे का मौन

सत्यम श्रीवास्तव सिविल सोसायटी के भीतर ‘सिविल सोसायटी’ शब्द एक बार फिर से चर्चा में है। एक लोकतान्त्रिक देश जो नागरिकों का है, नागरिकों के द्वारा है और नागरिकों के लिए ही वजूद में है, वहां सिविल सोसायटी या नागरी समाज का भिन्न-भिन्न कारणों से चर्चा में आना इस बात का पुख्ता सबूत है कि…

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कोरोना काल में मंदिरों को खुलवा कर क्या हासिल करना चाहते हैं कोश्यारी?

अनिल जैन हिंदुत्व का झंडा लहरा रहे महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को पता नहीं यह बात क्यों समझ में नहीं आ रही है कि मंदिरों को खोलने की अनुमति न देकर उद्धव ठाकरे की सरकार हिन्दुओं का भला ही कर रही है।मुंबई सहित राज्य के कई शहरों भाजपा की ओर से सड़कों पर आकर…

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बाबा साहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म ही क्यों अपनाया?

रविकान्त डॉक्टर बी. आर आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया। 64 साल पहले हुई इस महत्वपूर्ण घटना की क्या वजह थी? डॉक्टर आंबेडकर ने बौद्ध धर्म की ही दीक्षा क्यों ली? ‘असमानता और उत्पीड़न के प्रतीक, अपने प्राचीन धर्म को त्यागकर आज मेरा पुनर्जन्म हुआ है। अवतरण…

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