ममता कालिया सुपरिचित वरिष्ठ लेखिका हैं। वे साहित्य की सभी विदाओं- कहानी, नाटक, उपन्यास कविता सहित पत्रकारिता में भी प्रमुख दकल रखती हैं । हिन्दी साहितय के परिदृश्य पर उनकी उल्लेखनीय उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। आज पढ़ें उनकी कहानी- थोड़ा-सा प्रगतिशील विनीत ने अपनी सहपाठी चेतना दीक्षित के साथ दोस्ती, मुहब्बत […]
Read Moreवह स्थिति सबसे जटिल होती है जब लेखक के अंदर उसका रचनाकार होना ही उसको तोड़ने लगता है। अवसाद और बेचैनी, लम्बे समय तक कुछ भी नहीं लिख पाना, जो भी हो, लब्बोलुआब यह कि यह समझ लें कि कभी उत्तेजना और आवेग में लंबे समय तक नहीं लिखना है। यह खतरे को निमंत्रण देना […]
Read Moreअलग राज्य बनने के बाद भी छत्तीसगढ़ में उपेक्षा व अनदेखी से वे खून का घूंट पीकर मध्यप्रदेश के भोपाल मे विस्थापित हो गए । आज भी सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ मे इस महान रंगकर्मी को वो सम्मान व स्थान नही दिया जा रहा है जिसके वे हकदार हैं । हालांकि रंगकर्म से जुड़े लोग, संस्थाएं […]
Read Moreकोई 10-15 साल पहले मैंने कम्युनिस्ट आंदोलन पर कुछ व्यंग्य कथाएं लिखी थीं। वे बहुत कम छपी है। उनमें से एक कथा भाषा पर भी है।उस कथा को फेसबुक पर लगाने की बात सोच रहा था कि ध्यान आया दरअसल वह एक पूरी सीरीज़ है और उस पर समग्रता में ही बात हो सकती है। […]
Read Moreकोरोना महामारी के चलते फिल्म उद्योग को काफी नुकसान पहुंचायाहो रहा है. लॉकडाउन के कारण सिनेमा हॉल बंद हैं जिससे परंपरागत सिनेमा थिएटरों के पूरी तरह बंद हो जाने का खतरा पैदा हो गया है कोरोना वायरस ने बॉलीवुड और सिनेमाघरों को आमने-सामने ला दिया है. लगभग दो महीने से चल रहे कोरोना लॉकडाउन […]
Read Moreअंधेरों में लोगों से छुपकर चूचाप देर रात सन्नाटे में तो सिर्फ गलत काम ही किया जाता है सुन रखा है बचपन से । क्या इसीलिए रात का कर्फ्यू लगाया है कि जनता को घरों में नजरबंद कर तमाम अनैतिक और असंवैधानिक कामों को रात के सन्नाटे में आसानी से अंजाम दिया जा सके ? […]
Read Moreकैलाश बनवासी की कहानियां आम आदमी और दैनिन्दिन घटनाओं के ईर्दगिर्द बुनी होती हैं और बहुत सहजता से वे अपनी बात पाठकों तक पहुंचाते हैं । ‘लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ ‘ ‘बाजार में रामधन’, ‘पीले कागज की उजली इबारत ‘ कहानी संग्रह एवं ‘लौटना नहीं है ‘उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं । वे श्याम व्यास पुरस्कार, […]
Read More“संकट के समय सार्वजनिक क्षेत्र लड़ाई में सबसे आगे, जबकि सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही” कोविड-19 समाज को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। आमतौर पर ऐसी भयावह घटनाएं समाज में नए विचार और बड़े परिवर्तन को जन्म देती हैं। इस संकट का सामना करते हुए हम भविष्य की एक झलक मात्र देख पा […]
Read Moreपिछले दो माह से लॉक डाउन , कर्फ्यू, ताली थाली घंटे की नौटंकी के बाद अब कह रहे हैं कोरॉना के साथ ही जीना सीखें। करोड़ों कामगारों को सड़क पे मरने छोड़कर अब हाथ खड़े कर रहे हैं। इतनी बेशर्मी और क्रूरता सिर्फ एक सेडिस्ट ही कर सकता है।क्या कामगार इस देश के नागरिक नहीं […]
Read Moreबशारत शमीम (अनुवाद महेश कुमार) यह लेख उग्रवाद के शुरूआती दिनों में कश्मीर की आबादी की कई दुविधाओं को जानने की कोशिश करता है। जैसा कि रोज़ाना कश्मीर में तीव्र होती दैनिक मुठभेड़ों की वजह से नागरिकों की मृत्यु, संपत्ति का विनाश और अत्यधिक सैन्य घेराबंदी जारी है, वहीं मिर्जा वहीद का उपन्यास, द कोलोबोरेटर, […]
Read More