Apratim Mukarji For the second time in twenty years the dreaded Islamist fundamentalist force, the Taliban, have returned to power, the first time in 1994-96 by waging war against the Afghanistan state then run by the Burhanuddin Rabbani-Ahmad Shah Massoud government and this time, in the August of 2021 through a machivellian combination of warfare […]
Read Moreअनिल जैन नज़रिया: हर समाज, देश और युग में कोई न कोई महानायक हुआ है जिसने अन्याय और अत्याचार के तत्कालीन यथार्थ से जूझते हुए स्थापित व्यवस्था को चुनौती दी है और सामाजिक न्याय की स्थापना के प्रयास करते हुए न सिर्फ अपने समकालीन समाज को बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी गहरे तक प्रभावित किया […]
Read Moreप्रेम कुमार बंटवारे के वक्त तो बंटे हुए लोग एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हो रहे थे। आज़ाद हिन्दुस्तान के नागरिक तो बंटे हुए नहीं हैं फिर भी वे एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे क्यों हो जाते हैं? क्यों आज़ाद हिन्दुस्तान का नागरिक प्रशासन अपने नागरिकों के ही ख़ून बहाने को तुला हुआ है? और, […]
Read Moreलंबे समय तक भाजपा की छवि ऊंची जातियों की पार्टी की थी. कल्याण सिंह, उमा भारती और विनय कटियार जैसे लोगों ने उसे ओबीसी की पार्टी भी बनाने में मदद की. कल्याण सिंह एक प्रमुख ओबीसी नेता थे जिनकी पैठ उनके स्वयं के लोध समुदाय के अतिरिक्त उत्तरप्रदेश की अन्य गैर-यादव ओबीसी जातियों जैसे मल्लाह, […]
Read Moreबिहार के 10 दलों के प्रतिनिधिमंडल ने देश भर में जाति आधारित जनगणना कराए जाने के समर्थन में सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल में नीतीश कुमार के अलावा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव,भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत कई अन्य दलों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। नीतीश और तेजस्वी […]
Read Moreप्रशांत पद्मनाभन तर्कवादी सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की 8वीं पुण्यतिथि के बाद प्रशांत पद्मनाभन ने उनकी विरासत को याद करते हुए लिखा है कि “वैज्ञानिक मनोवृत्ति” क्या होती है और कैसे इसका विकास किया जा सकता है। तर्कवादी सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की 8वीं पुण्यतिथि के बाद प्रशांत पद्मनाभन ने उनकी विरासत को याद करते हुए लिखा […]
Read Moreअमिताभ फिल्म मेलोड्रामा से बच सकती तो हिंदी सिनेमा में दलित विमर्श का एक गंभीर प्रस्थान बिंदु बन सकती थी। फिर भी, यह विषय उठाने के लिए निर्देशक बधाई के हक़दार हैं। देखने लायक फ़िल्म है और जी5 पर देखी जा सकती है। 2004 में नागपुर में दलित महिलाओं के एक समूह ने बलात्कार और […]
Read Moreभारत का बंटवारा 20 वीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था. बंटवारे के दौरान जितनी बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं और जिस बड़े पैमाने पर उन्हें अपने घर-गांव छोड़कर सैकड़ों मील दूर अनजान स्थानों पर जाना पड़ा, उस पैमाने की त्रासदी दुनिया में कम ही हुईं हैं. बंटवारे के घाव […]
Read Moreरायपुर का गोल बाजार एक अनमोल ऐतिहासिक धरोहर है जिस पर नगरवासियों को , विशेष रूप से पैदाइशी रइपुरियों को गर्व रहा है। यह न सिर्फ रायपुर बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरव है। देखा जाए तो हर गांव कस्बे का पुराना बाजार अपनी खासियत लिए होता है ,अपनी एक विशिष्ट संस्कृति का वाहक […]
Read Moreइप्टा ने अपने संस्थापक सदस्य ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्मों के तत्कालीन और वर्तमान संदर्भों के बीच सेतु बनाने के लिए पाँच कड़ियों में उनकी छह फिल्मों पर विशेषज्ञों के साथ ऑनलाइन चर्चा आयोजित की। इसकी पाँचवीं और अंतिम कड़ी में इप्टा की पहली फिल्म ‘धरती के लाल’ पर केंद्रित परिचर्चा का ऑनलाइन आयोजन हुआ। […]
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