By- हृदयेश जोशी मनरेगा को नाकामियों का स्मारक बताने वाले अचानक से मनरेगा में अपने मुक्ति का मार्ग क्यों खोजने लगे हैं? बात मनरेगा के बहाने सामाजिक सुरक्षा की, आखिर क्यों पूरी दुनिया में धुर पूंजीवाद की वकालत करने वाले शासक भी संकट के समय साम्यवादी हो जाते हैं. 20 लाख करोड़ के विशेष पैकेज […]
Read MoreBy-Azim Premji Sixteen young men were mowed down by a train. The details are still being investigated. But we do know the basic truth. Like millions of others who lost their livelihood, they were starving. So, they decided to walk a few hundred kilometres to their homes and slept on the tracks assuming no trains […]
Read Moreवे चल रहे हैं सड़कों पर । लगातार चल रहे हैं । पेट में भूख और पैरों में छाले है । सूटकेस की गाड़ी है , बच्चे की सवारी है । मां खींच रही है । बच्चे की आंखों में नींद है । सपने में रोटी दिख रही (होगी) […]
Read Moreअमितेश कुमार गिरीश कर्नाड, नाम जेहन में आते ही वो बेधने वाली तस्वीरें सामने आ जाती है जिसमें एक शख्स नाक में ड्रिप लगाए ‘नॉट इन माई नेम’ की तख्ती लिए हुआ खड़ा है, जो अपने समय में अपनी उपस्थिति को भौतिक रूप से भी दर्ज कराना चाहता है. जिसके सरोकार का दायरा केवल रचनाओं […]
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