दिल्ली। ‘जिनकी जिंदगी संघर्षों से लदी हुई है। वे वॉचमैन जो चौबीस घंटे कठिन ड्यूटी करते हैं दो जून रोटी के लिए अपना घर-अपना देस छोड़कर महानगरों में बदहाल स्थितियों में रहने के लिए विवश हैं। ऐसे ही लोग ‘बंबई में का बा’ जैसे गीत के प्रेरणास्रोतों में से एक हैं। सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ सागर […]
Read Moreजितेन्द्र कुमार हरिवंश कितने नैतिक हैं इसका अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि वर्ष 2014 में वह राज्यसभा में मनोनीत होते हैं, लेकिन आने वाले तीन वर्षों तक प्रभात खबर से 60 लाख रुपये से अधिक की राशि लगातार ले रहे हैं, जिसका जिक्र वह अपने आयकर रिटर्न में करते हैं। कायदे से […]
Read Moreप्रबुद्ध सिंह जब किसानों को फसल का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता है तो क्या उसी अनुपात में यह भूमिहीन किसानों (एक बार फिर से इसमें अधिकतर दलित और आदिवासी आबादी शामिल है) की आय पर प्रतिकूल असर डालने वाला साबित नहीं होता है? जब एक बार खेतीबाड़ी के “संपूर्ण पतन” के चलते ग्रामीण आय पूरी […]
Read Moreसंजय राय पच्चीस साल यानी एक चौथाई सदी पूरी हो गयी! 1995 में 21 सितंबर (गणेश चतुर्थी) को यह अफवाह फैली कि गणेश प्रतिमाएं दूध पी रही हैं। देखते ही देखते मंदिरों में भीड़ लग गई। न्यूज़ चैनलों पर अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई नेता गणेश जी को दूध पिलाते दिख रहे थे। इसके बाद […]
Read Moreनेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज हुआ डॉक्यूड्रामा “सोशल डायलेमा” इन दिनों काफी चर्चा में है.यह हमें बताती है कि लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सोशल वेबसाइट्स द्वारा जो अल्गोरिदम सेट किए जा रहे हैं वह ऑब्जेक्टिव नहीं हैं. वह “किसी कामयाबी की परिभाषा” के तहत गढ़े जा रहे हैं. इसी डाक्यूड्रामा से […]
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