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Month: April 2020

राहुल गांधी- रघुराम राजन संवादःलॉकडाउन हटाने से पहले करने होंगे 5 लाख कोरोना टेस्ट

 कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के साथ रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने लंबी और ख़ास बातचीत में कहा कि लॉकडाउन हटाने से पहले कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए रोज़ाना कम से कम पाँच लाख टेस्ट होने चाहिये। राजन का कहना है कि दुनिया के बड़े संक्रमण विशेषज्ञों का मानना है संक्रमण की…

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शंकरानंद की कविताएं-

1-भरोसा कोई अगर आंख बंद किए चल रहा है हाथ पकड़ कर तो उसके रास्ते के पत्थर देखना संभालना गिरने से पहले जब भी वह कुछ कहे तो सुनना देखना कि उसकी आंखें क्या देखना चाहती हैं सुनना उसकी हर आवाज जो कहने से पहले रुक जाए कंठ में बहुत मुश्किल से मिलता है वह…

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इरफान खानः कुछ यादें – अशोक मिश्र

मशहूर फिल्म अदाकार और जिंदादिल इंसान इरफान खान अब हमारे बीच नहीं हैं । अपनी अदाकारी के दम पर लोगों के दिलों में राज करने वाले बहुत कम ही होते हैं । इरफान खान उन्हीं में से एक हैं । एक आम आदमी सा , हर एक को अपना सा ही लगने वाला, मोतीलाल, बलराज…

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व्यंग्य: कोरोना काल में पूछना ताऊ के हालचाल – जीवेश चौबे

कोरोना का कहर है और देश  क्या पूरे संसार में बहुतई मारा मारी मची पड़ी है । ऐसा समय है कि जान पहचान वाले क्या दोस्त यार मां बाप- बेटे- बेटी से लेकर प्रेमी प्रेमिका तक मिल नहीं पा रहे । अब विदेशियों का क्या वो तो पहले ही परिवार से दूर रहते हैं, तकलीफ…

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कोरोना महामारी के दौर में सदमा- शिव विश्वनाथन

सदमा वह घाव है जो देह से आत्मा में जख्म उतार देता है। उसके साथ कलंक और लांछन की छायाएं डोलती आती हैं। अमूमन वह ज्यादातर आपदाओं के पीछे-पीछे आता है और उसे बाद का असर समझा जाता है। कोरोना वायरस महामारी का सदमा भी ऐसा ही है। आज भारत खुद को एक मध्यवर्गीय समाज…

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शहनाज़ इमरानी की कविताएं-

1 – तालाबंदी   एक सुबह दुनिया नियमबद्ध होकर घड़ी बनी  घर पर रहें कोविड-19, दूरी बना कर रखें  हाथ बार-बार धोएं ,मुंह ढककर खांसें  अद्भुत है हमारी व्यवस्था  एक तरफ मजबूर लोगों का हुजूम  दूसरी तरफ बंद घरों के ड्रॉईंग रूम में बैठे लोग  जो डर गए इनके पलायन से  सरकार के वफ़ादार मिडिया पर शुरू हुआ है…

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मीडिया के ‘मुनाफ़े’ पर कोरोना की सेंध- -भास्कर उप्रेती

भारतीय मीडिया बालू के ढेर में खड़ा चमकता हुआ बुर्ज है. कोरोना की आंधी ने इसके नीचे की रेत को उड़ाकर इसे ज़मींदोज कर दिया है. यह रेत बनी थी विज्ञापनों से. मंदी (जो कि दरअसल महामंदी ही थी, मगर कोई बोल नहीं रहा था) और महामारी के दुर्योग ने विश्व की सबसे बड़ी मीडिया…

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‘समाजवाद या बर्बरतावाद : मार्क्सवाद का द्वंद्वात्मक अंतर्विरोध’ – संजीव जैन

रोजा लक्जमबर्ग ने मार्क्स के अध्ययन और पूंजीवादी व्यवस्था या उत्पादन पद्धति के उनके विश्लेषण के परिणामों पर लिखते हुए यह टिप्पणी की थी कि पूंजीवाद अपने चरम विकास की स्थिति में दो ही दिशाओं में जा सकता है : समाजवाद या बर्बरतावाद। स्वयं मार्क्स ने कभी भी इतिहास और भविष्य को एक निश्चित अंतर्निहित…

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आंबेडकर और आरएसएस की कथित निकटता की पोल खोलता चुनाव आयोग का आंकड़ा – अरविन्द कुमार

आरएसएस के प्रचारक कई वर्षों से ऐसा दावा करते आए हैं कि आंबेडकर उनके संगठन के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और उनका रुख इस संगठन के प्रति सकारात्मक था. लेकिन अपने दावे को साबित करने के लिए आरएसएस विचारकों ने कभी कोई भी तथ्य उपलब्ध नहीं कराए. क्या डॉ. भीमराव आंबेडकर ने आरएसएस या…

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क्या ‘प्रतिष्ठा’ अब सिर्फ़ सत्ता के प्रतिष्ठान में रह गई है? – अपूर्वानंद

बंबई उच्च न्यायालय ने सरकार को समाज के जाने माने लोगों की मदद लेने की सलाह दी। मैं बंबई उच्च न्यायालय को कहना चाहता था कि इस समाज में अब कोई ऐसा बचा नहीं। सबकी प्रतिष्ठा रौंद डाली गई है। वरना यह कैसे हुआ कि जो विश्व भर में मान्य हैं, वैसे तीन अर्थशास्त्री, अमर्त्य…

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